सावित्रीबाई फुले: ज़माने को बदला अपने विचारों से

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हम अंदाज़ा लगा ही सकते हैं कि जब दलितों का आज भी इतना शोषण होता है तो आज से 150 साल पहले क्या हाल रहा होगा। ऐसे में ज्योतिबा और सावित्रीबाई फुले ने इनके हकों की बात उठाई। पति-पत्नी की इस जोड़ी ने मांगा और महार जातियों के बीच काम किया। महाराष्ट्र में ये जातियां सबसे निचली मानी जाती थीं। उन्होंनें इन जातियों में भी सबसे दबे हुए वर्ग की लड़कियों और औरतों के साथ काम किया।

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पढ़ना-लिखना सीखो: सफदर हाशमी

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सफदर हाशमी का जन्म साल 1954 में आज ही के दिन हुआ था। वे एक कम्युनिस्ट नाटककार, कलाकार, निर्देशक, गीतकार और कलाविद थे। उन्हे नुक्कड़ नाटक के साथ उनके जुड़ाव के लिए जाना जाता है। सफदर जन नाट्य मंच और दिल्ली में स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) के स्थापक-सदस्य थे। उनकी 2 जनवरी 1989 को साहिबाबाद में एक नुक्कड़ नाटक ‘हल्ला बोल’ खेलते हुए हत्या कर दी गई थी। उनका ये गीत अत्यंत लोकप्रिय हुआ।

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एक्टिविज़्म पर कुछ विचार

ऑल इंडिया विमेन्ज़ असोसिएशन  की कॉनफरेन्स (आई.ए.डब्ल्यू.एस.) एक ऐसी मंच है जहाँ देश भर से छात्र और अकादमिक अपने  रिसर्च पेपर प्रस्तुत करने आते हैं और देश भर में  जाने पहचाने शिक्षाविद, छात्र, अकादमिक और विकास क्षेत्र में काम करने वाली संस्थाओं के कार्यकर्ताओं के साथ इनपर चर्चा करते हैं। इस कॉनफरेन्स में नारीवादी मुद्दों पर चर्चा होती है। इस साल आयोजित की गई कॉनफरेन्स के कुछ विषय थे – जेंडर और काम, विकलांगता, जेंडर और यौनिकता के सम्बन्ध, जेंडर और यौनिकता के सन्दर्भ  में नारीवादी सवाल इत्यादि।आई.ए.डब्ल्यू.एस. साल 1982 में एक सदस्यता आधारित  संस्था के रूप में शुरू हुआ था, और साल  2017 में उन्हें काम करते हुए 35 साल पूरे हो गए हैं।

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उन्नीसवीं सदी का महाराष्ट्र और सावित्रीबाई फुले

संपादक की ओर से: आज के महाराष्ट्र में महिलाओं की स्थिति और उन्नीसवीं सदी की महिलाओं की स्थिति में बहुत अंतर है और इस अंतर के लिए, आज के महाराष्ट्र के लिए, और महिलाओं की आज की बेहतर स्थिति के लिए सावित्रीबाई फुले जैसे सामाजिक कार्यकर्ताओं का योगदान अतुलनीय है। सावित्रीबाई फुले के जन्मदिवस (3 जनवरी) के अवसर पर उनके योगदान को याद करते हुए लेखक ने उन्नीसवीं सदी के महाराष्ट्र और उसकी महिलाओं की स्थिति पर प्रकाश डाला है।

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हम 21वीं शताब्दी में जी रहे हैं, आज भी हमारे यहाँ कन्या भ्रूण हत्या होती है, लड़कियों की पढ़ाई पर रोक लगा दी जाती है और बहुत से लोग लड़कियों को सिर्फ़ इस लिए पढ़ाते हैं कि पढ़ा-लिखा लड़का मिल जाएगा, लड़की घर को आर्थिक रूप से संभालने में सक्षम हो जाएगी और बच्चों को पढ़ा लेगी। हालांकि ये भी मानना होगा कि धीरे-धीरे भारतीय समाज में काफ़ी बदलाव आये हैं परन्तु आज भी समाज में महिलाओं की स्थिति दोयम दर्जे पर है। आज ये हालात हैं तो हम 186 साल पहले के समाज की कल्पना कर ही सकते हैं, जब सावित्री बाई फुले का जन्म हुआ था।

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