सावित्रीबाई फुले: ज़माने को बदला अपने विचारों से

important-days

हम अंदाज़ा लगा ही सकते हैं कि जब दलितों का आज भी इतना शोषण होता है तो आज से 150 साल पहले क्या हाल रहा होगा। ऐसे में ज्योतिबा और सावित्रीबाई फुले ने इनके हकों की बात उठाई। पति-पत्नी की इस जोड़ी ने मांगा और महार जातियों के बीच काम किया। महाराष्ट्र में ये जातियां सबसे निचली मानी जाती थीं। उन्होंनें इन जातियों में भी सबसे दबे हुए वर्ग की लड़कियों और औरतों के साथ काम किया।

Continue reading

अदालत

myladymylord22.jpg

दिल्ली हाई कोर्ट की पहली महिला जज और भारतीय हाई कोर्ट के इतिहास में पहली महिला चीफ जस्टिस (हिमाचल प्रदेश) लीला सेठ (20 अक्टूबर 1930 – 5 मई 2017) ने ज़िंदगी को भरपूर जिया है। ‘घर और अदालत’ नाम की अपनी आत्मकथा में उन्होंने अपनी ज़िंदगी के खुशनुमा पलों के साथ-साथ मुश्किलों का भी ज़िक्र किया है। पेश है कहीं अंतरंग, कहीं पेचीदा और कहीं हँसा देने वाली इस किताब से एक अंश।

Continue reading

‘कलामे निस्वां’: मुस्लिम औरतों की सुलगती आवाजें

अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर आपके सामने पेश है निरंतर प्रकाशन कलामे निस्वां से एक लेख. इस प्रकाशन में हैं उर्दू में लिखी मुसलमान औरतों की आवाजें, जिनका वैसे के वैसे हिन्दी में लिप्यन्तरण कर दिया गया है. ये आवाजें करीब सौ साल पुरानी हैं. ये मुसलमान औरतें अपनी दुनियाँ देख रही हैं, मज़े ले रही हैं उसकी नुकताचीनी भी कर रही हैं. इनमे हिचकिचाहट भी है तो कहीं वे बेख़ौफ़ भी नज़र आती हैं. ये खुदमुख्तार औरतें है जो कई बार अपने नाम से नहीं लिख पाती हैं. मगर फिर भी वे लिखती हैं, बोलती हैं.

Continue reading

जानिये सावित्रीबाई फुले के जीवन से जुड़ी 7 बातें

सावित्रीबाई फुले का नाम कितनी ही बार शिक्षा या फिर नारीवादी मुद्दों के बारे में बात करते हुए आता है। उन्होंने अपने पति ज्योतिराव फुले के साथ मिलकर लड़कियों की शिक्षा तक पहुँच बनाई, जाति प्रथा और जेंडर के आधार पर भेदभाव का विरोध किया, और अपने समय में प्रचलित कई पुराने कायदों को चुनौती दी। उनकी सोच सिर्फ उनके काम में नहीं, बल्कि उनकी पूरी ज़िन्दगी में झलकती है। आइये सुलझाते हैं उनके जीवन के बारे में कुछ पहेलियाँ और जानते हैं उन्हें और बेहतर तरीके से। Continue reading

छेड़खानी समझने के लिए समझें चाहत, प्यार, और इच्छाओं को

निरंतर में पिछले एक साल से हम एक कार्य-शोध कर रहे हैं। इस कार्य-शोध की कल्पना 2014 में हुई थी जब हमने कम उम्र में विवाह और बाल विवाह पर एक अध्ययन किया था और यह पाया था कि युवाओं की ज़िंदगी से जुड़े इस मुद्दे की चर्चाओं और काम में युवाओं का आवाज़ ग़ायब हैं। युवा जेंडर, यौनिकता, और शादी के बारे में क्या सोचते हैं और इनका जुड़ाव जाति, वर्ग, पितृसत्ता, धर्म की व्यवस्था से कैसे समझते हैं यह व्यक्त करने के लिए हम एक मंच तैयार करना चाहते थे। हमने थिएटर, खास कर “थिएटर ऑफ़ द ओप्प्रेस्सेड” की तकनीकों का इस्तेमाल करने का प्रयास किया है। रिसर्च के दरमियान हमने राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और दिल्ली में युवाओ के साथ कार्यशालाएं की हैं। यह ब्लॉग पोस्ट ऐसी एक कार्यशाला में बताई गई घटना और उससे शुरू हुई चर्चा के बारे में है।
Continue reading