सावित्रीबाई फुले: ज़माने को बदला अपने विचारों से

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हम अंदाज़ा लगा ही सकते हैं कि जब दलितों का आज भी इतना शोषण होता है तो आज से 150 साल पहले क्या हाल रहा होगा। ऐसे में ज्योतिबा और सावित्रीबाई फुले ने इनके हकों की बात उठाई। पति-पत्नी की इस जोड़ी ने मांगा और महार जातियों के बीच काम किया। महाराष्ट्र में ये जातियां सबसे निचली मानी जाती थीं। उन्होंनें इन जातियों में भी सबसे दबे हुए वर्ग की लड़कियों और औरतों के साथ काम किया।

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अदालत

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दिल्ली हाई कोर्ट की पहली महिला जज और भारतीय हाई कोर्ट के इतिहास में पहली महिला चीफ जस्टिस (हिमाचल प्रदेश) लीला सेठ (20 अक्टूबर 1930 – 5 मई 2017) ने ज़िंदगी को भरपूर जिया है। ‘घर और अदालत’ नाम की अपनी आत्मकथा में उन्होंने अपनी ज़िंदगी के खुशनुमा पलों के साथ-साथ मुश्किलों का भी ज़िक्र किया है। पेश है कहीं अंतरंग, कहीं पेचीदा और कहीं हँसा देने वाली इस किताब से एक अंश।

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एक्टिविज़्म पर कुछ विचार

ऑल इंडिया विमेन्ज़ असोसिएशन  की कॉनफरेन्स (आई.ए.डब्ल्यू.एस.) एक ऐसी मंच है जहाँ देश भर से छात्र और अकादमिक अपने  रिसर्च पेपर प्रस्तुत करने आते हैं और देश भर में  जाने पहचाने शिक्षाविद, छात्र, अकादमिक और विकास क्षेत्र में काम करने वाली संस्थाओं के कार्यकर्ताओं के साथ इनपर चर्चा करते हैं। इस कॉनफरेन्स में नारीवादी मुद्दों पर चर्चा होती है। इस साल आयोजित की गई कॉनफरेन्स के कुछ विषय थे – जेंडर और काम, विकलांगता, जेंडर और यौनिकता के सम्बन्ध, जेंडर और यौनिकता के सन्दर्भ  में नारीवादी सवाल इत्यादि।आई.ए.डब्ल्यू.एस. साल 1982 में एक सदस्यता आधारित  संस्था के रूप में शुरू हुआ था, और साल  2017 में उन्हें काम करते हुए 35 साल पूरे हो गए हैं।

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Desire, Shame and Aspirations – Young Girls Tell Their Stories

Bringing out the voices and different facets of lives of young girls, the illustrated book ‘Beauty, Bebo and Friends Pick a Fight and Other Stories’ was launched last month in Delhi.

Dipta Bhog who is associated with Sadbhavana Trust and Disha Mullick who is associated with Khabar Lahariya, collated the data for the book which features three illustrated stories. These stories were based on the adventures of different girls across various villages in India. It portrays groups of women who support each other across generations.

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छेड़खानी समझने के लिए समझें चाहत, प्यार, और इच्छाओं को

निरंतर में पिछले एक साल से हम एक कार्य-शोध कर रहे हैं। इस कार्य-शोध की कल्पना 2014 में हुई थी जब हमने कम उम्र में विवाह और बाल विवाह पर एक अध्ययन किया था और यह पाया था कि युवाओं की ज़िंदगी से जुड़े इस मुद्दे की चर्चाओं और काम में युवाओं का आवाज़ ग़ायब हैं। युवा जेंडर, यौनिकता, और शादी के बारे में क्या सोचते हैं और इनका जुड़ाव जाति, वर्ग, पितृसत्ता, धर्म की व्यवस्था से कैसे समझते हैं यह व्यक्त करने के लिए हम एक मंच तैयार करना चाहते थे। हमने थिएटर, खास कर “थिएटर ऑफ़ द ओप्प्रेस्सेड” की तकनीकों का इस्तेमाल करने का प्रयास किया है। रिसर्च के दरमियान हमने राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और दिल्ली में युवाओ के साथ कार्यशालाएं की हैं। यह ब्लॉग पोस्ट ऐसी एक कार्यशाला में बताई गई घटना और उससे शुरू हुई चर्चा के बारे में है।
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